Note:- Use Translate for English
बाबारावजीका जन्म नासिक जनपदके भगूर नामक गांवमें १३ जून १८७९ को हुआ । बचपनमें उनकी प्रकृति दुर्बल थी । छठे वर्षसे चौदहवें वर्षतक उन्हें लगभग दोसौ बार बिच्छूदंश हुआ । आगे क्रांतिकारी जीवनमें यातना सहनेकी शक्ति प्राप्त हो, प्रकृतिका कदाचित यही नियोजन रहा होगा । युवावस्थामें भी उन्होंने अपने शरीरको बहुत कष्ट दिए । कडकडाती ठंडमें भी वे खुले बदन, ओढनाके बिना घरके बाहर सोते थे । उनके सिरमें निरंतर क्रांतिके ही विचार घूमते रहते थे ।
बलशाली ब्रिटिश साम्राज्यके
विरुद्ध क्रांति करना, यह एक-दो व्यक्तियोंका काम नहीं है, उसके लिए प्रबल एवं कट्टर संगठनकी आवश्यकता है, बाबारावजीने यह छोटी आयुमें ही जान लिया । इस हेतु `मित्रमेला' नामक संगठनकी स्थापना की गई । उन्होंने आमसभा आयोजित कर राष्ट्रगुरु रामदासस्वामी, छत्रपति शिवाजीमहाराज, नाना फडणवीस आदि महान पुरुषोंकी जयंतियां मनाना
आरंभ किया । उस कारण युवाओंमें तथा जनतामें देशभक्ति जागृत होनेमें
बहुत मदद हुई ।
अंग्रेज़ी राज के खिलाफ बाबाराव के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने युवाओं को हथियार बांटकर उन्हें अंग्रेज़ी राज से लोहा लेने का संदेश दिया था | क्विंट की एक रिपोर्ट की मानें तो इसके साथ ही, बाबाराव ने 1904 में क्रांतिकारी संगठन अभिनव भारत सोसायटी की स्थापना भी की थी |1897 में प्लेग आफीसर रेंड के अत्याचारों से क्रुद्ध चापेकर बंधुओं ने उसकी हत्या की और उससे पूरे महाराष्ट्र में हलचल मच गई तो गणेश पर, जो बाबा सावरकर कहलाते थे, इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।एक बार तो वे सन्न्यास लेने की सोचने लगे थे पर प्लेग में पिता की मृत्यु हो जाने से छोटे भाईयों की शिक्षा-दीक्षा आदि का दायित्व आ जाने से उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।
महाराष्ट्र में उस समय ‘अभिनव भारत’ नामक क्रांतिकारी दल काम कर रहा था। विनायक सावरकर इस दल से संबद्ध थे। वे जब इंग्लैण्ड चले गए तो उनका काम बाबा सावरकर ने अपने हाथों में ले लिया।वे विनायक की देशभक्त की रचनाएँ और उनकी इंगलैण्ड से भेजी सामग्री मुद्रित कराते, उसका वितरण करते और ‘अभिनव भारत’ के लिए धन एकत्र करते। यह कार्य सरकार की दृष्टि से ओझल नहीं रहा।1909 में वे गिरफ्तार किए गए। देशद्रोह का मुक़दमा चला और आजीवन कारावास की सज़ा देकर अंडमान भेज दिए गए। 1921 में वहाँ से भारत लाए गए और एक वर्ष साबरमती जेल में बंद रह कर 1922 में रिहा हो सके।गणेश सावरकर डॉ. हेडगेवार के संपर्क में आए जिन्होंने 1925 में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की स्थापना की। सावरकर आर. एस. एस. के प्रचार कार्य में लग गए।
बाबाराव ने अनेक
पुस्तक और प्रकाशन लिखे जो की निचे दिए गए मुताबिक है|
लेखन
·
1934 में प्रकाशित छद्म नाम दुर्गातनय , राष्ट्रमसन और
हिंदुस्तान के राष्ट्रस्वरूप के तहत काशी में लिखा गया।
·
हिंदू राष्ट्र - पूर्व-अब-अगला
·
आगरा पर शिवराय की चील कूद
·
वीरा-रतन-मंजुषा
·
ईसाई धर्म का अर्थ है ईसा का हिंदुत्व
·
धर्म क्यों?
·
मोपालियन विद्रोह
·
वीर बैरागी, मूल हिंदी भाषा
की पुस्तक से अनुवादित पुस्तक
·
पत्र लिखना
·
1857 का स्वतंत्रता संग्राम
प्रकाशन
·
नेपाली आंदोलन की पहल
·
संगठन संजीवनी
·
डरावना घंटा
स्पष्ट लेख
केसरी (पुणे), लोकमान्य (मुंबई), महाराष्ट्र
(नागपुर), सकल (मुंबई), आदेश (नागपुर), वंदे भारतम
(मुंबई), मराठा (अंग्रेजी, पुणे), श्रद्धानंद
(पुणे), प्रजापक्ष (अकोला), विक्रम ( सांगली)
आदि।
सजा समाप्त होने के बाद भले ही बाबा का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, फिर भी उन्होंने अपने पिछले
काम को नए जोश के साथ फिर से शुरू किया। उनका लेखन, पठन और प्रकाशन कार्य
भी बढ़ता गया। कई युवाओं को
प्रोत्साहित करते हुए, उन्होंने उन्हें
आश्वस्त किया कि सशस्त्र क्रांति के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जबकि क्रांतिकारी
कार्य निर्बाध रूप से चल रहा था। 16 मार्च 1945 को बाबाराव सावरकर का
निधन हो गया।
0 टिप्पणियाँ