सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में हैं!
बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर शहर के खिरनीबाग मुहल्ले में श्री मुरलीधर और माता मूलमती की दूसरी सन्तान के रूप में हुआ था| राम प्रसाद बिस्मिल को घर में सभी लोग प्यार से "राम" कहकर ही पुकारते थे|
बिस्मिल पढने लिखने में अच्छे विद्यार्थी नहीं थे और खेलने में ज्यादा रूचि लेते थे| लगभग 14 वर्ष की आयु में रामप्रसाद को अपने पिता की सन्दूकची से रुपये चुराने की आदत पड़ गयी थी| इन चुराए गए रुपयों से वह सिगरेट, भाँग और उपन्यास खरीदा करते थे|आठवीं कक्षा तक वो हमेश कक्षा में प्रथम आते थे, परन्तु कुसंगति के कारण उर्दू मिडिल परीक्षा में वह लगातार दो वर्ष अनुत्तीर्ण हो गए। राम प्रसाद की इस अवनति से सभी को बहत दु:ख हुआ और दो बार एक ही परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर उनका मन भी उर्दू की पढ़ाई से उठ गया।
बिस्मिल की बुरी लत को छुड़वाने के लिए परिवार के सदस्यों ने उन्हें मंदिर भेजना शुरू कर दिया| मंदिर में बिस्मिल नए-नए पुजारियों से प्रभावित हुए| वह नित्य मन्दिर में आने-जाने लगे| पुजारी जी के सम्पर्क में वह पूजा-पाठ आदि भी सीखने लगे| पुजारी जी पूजा-पाठ के साथ ही उन्हें संयम-सदाचार, ब्रह्मचर्य आदि का भी उपदेश देते थे| इन सबका राम प्रसाद पर गहरा प्रभाव पड़ा| बाद में धीरे-धीरे बिस्मिल जीवन के समस्त सुखों को त्यागकर विदेशी ताकतों को हटाने में जुट गए|
इसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ी पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। उनके पिता अंग्रेज़ी पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे पर रामप्रसाद की मां के कहने पर मान गए। नवीं कक्षा में जाने के बाद रामप्रसाद आर्य समाज के सम्पर्क में आये और उसके बाद उनके जीवन की दशा ही बदल गई। आर्य समाज मंदिर शाहजहाँपुर में वह स्वामी सोमदेव के संपर्क में आये। जब रामप्रसाद बिस्मिल 18 वर्ष के थे तब स्वाधीनता सेनानी भाई परमानन्द को ब्रिटिश सरकार ने ‘ग़दर षड्यंत्र’ में शामिल होने के लिए फांसी की सजा सुनाई (जो बाद में आजीवन कारावास में तब्दील कर दी गयी और फिर 1920 में उन्हें रिहा भी कर दिया गया)।
यह खबर पढ़कर रामप्रसाद बहुत विचलित हुए और ‘मेरा जन्म’ शीर्षक से एक कविता लिखी और उसे स्वामी सोमदेव को दिखाया। इस कविता में देश को अंग्रेजी हुकुमत से मुक्ति दिलाने की प्रतिबद्धिता दिखाई दी।राम प्रसाद ने गेंदालाल दीक्षित के मार्गदर्शन में "मातृवेदी" नाम का एक संगठन बनाया था| इस दल के लिये धन एकत्र करने के उद्देश्य से रामप्रसाद ने, जून 1918 से सितम्बर 1918 तीन डकैतियाँ भी डालीं|
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो बिस्मिल कुछ क्रांतिकारियों के साथ मिलकर विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाने लगे| इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी| लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी| इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया| उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई| 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा|
26 सितम्बर 1925 को बिस्मिल के साथ पूरे देश में 40 से भी अधिक लोगों को ‘काकोरी डकैती’ मामले में गिरफ्तार कर लिया गया।रामप्रसाद बिस्मिल को अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गयी। उन्हें 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गयी।
जिस समय रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी लगी उस समय जेल के बाहर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहे थे। हज़ारों लोग उनकी शवयात्रा में सम्मिलित हुए और उनका अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया।||
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