हेमू कालाणी सिंध के भगत सिंह | Hemu Kalani Biography in Hindi | Hindi |


हेमू कलानी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सक्खर में हुआ| इनके पिता का नाम पेसूमल कलानी था. इनकी माता जेठी बाई एक गृहिणी थीं| इनके पिता एक सम्मानित व्यक्ति और इज्जतदार खानदान से थे| जिनके ईटों के भट्ठे थे| इनके पिता का सम्मान कुछ अंग्रेज़ अधिकारी भी किया करते थे|हेमू का पूरा परिवार देशभक्ति से ओत-प्रोत था| उन्हें बचपन में भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों के किस्से कहानियां सुनाई जाती थी| इससे वे बहुत प्रभावित हुए| उनमें बचपन से ही देश पर कुर्बान होने की भावना उत्पंन हो चुकी थी|


 बाल्यावस्था में ही हेमू बड़े होशियार व बुद्धिमान थे|इनकी शिक्षा पांच वर्ष की आयु में गांव के प्राइमरी पाठशाला से शुरू हुई| यहां सिर्फ कक्षा 4 तक ही पढ़ाई होती थी| आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने सक्खर के तिलक हाईस्कूल कालेज में एडमीशन लिया था|हेमू जितने पढ़ाई में काबिल थे| उतने ही खेल-कूद में होनहार भी थे| अपने स्कूल में हेमू पढ़ाई के साथ ही हर प्रकार के खेल में हमेशा अव्वल नंबर पर रहते थे| उनको कुश्ती का भी बड़ा शौक था|



 वे अपने चाचा से कुश्ती के सारे दांव पेंच सीखा करते|हेमू ने कई बार कुश्ती में अंग्रेजी पहलवानों को भी मात दी| इसके अलावा कबड्डी खो-खो, वालीबाल, क्रिकेट और फुटबॉल इनके पसंदीदा खेलों में से एक थे|दिलचस्प यह है कि, हेमू गांव की गलियों में अपने दोस्तों के साथ तिरंगा झंडा लिए देश प्रेम का गीत गाते और भारत माता की जय के नारे के साथ लोगों में जोश भरने का कार्य करते थे| 7 साल की आयु में ये अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी दल बनाकर उनका नेतृत्व करते|


8 अगस्त 1942 को गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुध्द भारत छोडो आन्दोलन तथा करो या मरो का नारा दिया। इससे पूरे देश का वातावरण एकदम गर्म हो गया। गांधी जी का कहना था कि या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या इसके लिए जान दे देंगे। अंग्रेजों को बारत छोड कर जाना ही होगा। जनता तथा ब्रिटिश सरकार के बीच लडाई तेज हो गई। 
अधिकांश कांग्रेसी नेता पकड पकड कर जेल में डाल दिए गए। इससे छात्रों,किसानों,मजदूरों,आदमी,औरतों व अनेक कर्मचारियों ने आन्दोलन की कमान स्वयं सम्हाल ली। पुलिस स्टेशन,पोस्ट आफिस,रेलवे स्टेशन आदि पर आक्रमण प्रारंभ हो गए। जगह जगह आगजनी की घटनाएं होने लगी। गोली और गिरफ्तारी के दम पर आंदोलन को काबू में लाने की कोशिश होने लगी। हेमू कालानी सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक था,जो जीवन के प्रारंभ से ही पढाई लिखाई के अलावा अच्छा तैराक,तीव्र साईकिल चालक तथा अच्छा धावक भी था। वह तैराकी में कई बार पुरस्कृत हुआ था। सिंध प्रान्त में भी तीव्र आन्दोलन उठ खडा हुआ तो इस वीर युवा ने आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया।

अक्टूबर 1942 में हेमू को पता चला कि अंग्रेज सेना की एक टुकडी तथा हथियारों से भरी ट्रेन उसके नगर से गुजरेगी तो उसने अपने साथियों के साथ इस ट्रेन को गिराने की सोची। उसने रेल की पटरियों की फिशप्लेट निकालकर पटरी उखाडने तथा ट्रेन को डिरेल करने का प्लान तैयार किया। हेमू और उनके दोस्तों के पास पटरियों के नट बोल्ट खोलने के लिए कोई औजार नहीं थे अत: लोहे की छडों से पटरियों को हटाने लगे,जिससे बहुत आवाज होने लगी। जिससे हेमू और उनके दोस्तों को पकडने के लिए एक दस्ता तेजी से दौडा। हेमू ने सब दोस्तो को भगा दिया किन्तु खुद पकडा गया और जेल में डाल दिया गया।यह पहली बार था, जब हेमू अंग्रेजों के हाथ आये थे| 

पहले से ही ब्रिटिश सरकार उनके कार्यों से परेशान थी| उन पर इस घटना को लेकर मुकद्दमा चलाया गया| अंग्रेजीं सिपाहियों ने हेमू को जेल के अंदर बहुत प्रताड़ित किया| वे उनसे उनके साथियों के नाम उगलवाना चाहते थे|मगर, कई सारी यातनाएं झेलने के बाद भी हेमू ने मुंह नहीं खोला| अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कई सारे प्रलोभन भी दिए| इसके बावजूद उन्होंने अपने दोस्तों का नाम नहीं बताया|

अंत में उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई| जब उन्हें सजा का फरमान सुनाया गया तो एक तरफ जहां उनके लोगों की आँखे नाम थीं| वहीं हेमू कलानी की आँखों में एक चमक दिख रही थी| बहरहाल, ब्रिटिश शासन के इस फैसले से सिंध में जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन होने लगा| कई बड़े राजनेताओं व क्रांतिकारियों ने भी इसका विरोध किया था| इसके बावजूद इस नौजवान क्रांतिकारी को 19 साल की उम्र मे 23 जनवरी 1943 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया|

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